एक खबर आ रही कि केंद्र सरकार देश के छः लाख गावं में कंडोम पहुचने की व्यवस्था
कर रही है इसके लिए एक निति बनकर तैयार है...एक समाज सेवी संगठन को इसका ठेका
भी दे दिया गया है...अर्थात सुबह शाम काम ना करो काम क्रीडा में व्यस्त रहो जय
हो.....ताकि आप सब या हम सब अपने अधिकारों से अपना ध्यान काम क्रीडा पर
दे.......*हाय राम*.... सरकार की सोच और व्यवस्था पर थूकने को जी कर रहा
है.....
आनाज सड़ने पर माननीय प्रधानमंत्री श्री डॉ. मनमोहन सिंह सिर्फ न्यायलय को निगत
शिक्षा सीखा सकते है बाकि तो वो मुस्कुरा कर या नीली पगड़ी पहकर शांत चित्र
मुद्रा में बैठ कर मनोभाव भी व्यक्त नहीं कर सकते.....कृषि मानती माँ करें
क्रिकेट मंत्री शरद पावर को लरिब असहाय लोगो की तड़प या भूख से कोई सरोकार नहीं
उनको तो बस क्रिकेट का बुखार है....उन्होंने शायद ही कभी किसी और राज्य में
जाकर किसानो की परेशानी का सबब लिया हो .......
आनाज साद सकता है परन्तु भूख से बिलखते बच्चो को एक निवाला उससे नहीं मिल सकता
गरीब की थाली कि बात की जाती है अरे मेरे दोस्तों गरीब की थाली नहीं होती वो
बेचारा तो हाथ पर रोटी रख कर और पत्तल पर चावल रख कर खा लेगा पर कमबख्तो उस तक
ये आनाज पंहुचा तो दो आनाज के सड़ने का कारण यह भी है की सरकार गावं गावं तक ये
आनाज कैसे पहुचाये इसलिए सरकार ने सोचा की क्यों ना इसको गोदामों में सड़ने ही
क्यों ना दिया जाये.....भारत के एक सर्वे के अनुसार (2006 ) भारत का 26 % गरीब
आज भी रोजी रोटी के लिए मोहताज है....
विपक्ष भाजपा का कहना है की सरकार की मंशा यह है की सड़े आनाज से शराब बनायीं
जा सके ताकि वैसे ये मुद्दा हो या नहीं पर कमीशनखोरो को इसका फायेदा दिया जा
सके मुझे तो यही लगता है....
वैसे क्या कहना सरकार का हर वो वास्तु जो अयाश्शी से जुडी है बनाओ और लोगो तक
पहुचाओ...डॉ. साहब मुस्कुरा देना या शांत मुद्रा में बैठे रहना ही गरिमा नहीं
भारत के प्रधानमंत्री को तब शोभा देगा जब वो कुछ करने की चेस्गता करें ना की
गोबर गणेश बना रहे.....भूखो और गरीबो को उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ने वाली
सरकार पादरी माल्थस का अनुशरण कर रही है....1943 में बंगाल की भुकमरी में वहां
के सेथ्सहुकारो के गोदाम हरे थे पर जनता बिलखती रही....
सामाजिक व्यवस्था में ऐसी सरकार सिर्फ संडास फ़ैलाने वाली टट्टी की भाँति है 35
हजार करोड़ के इस घोटाले में यह आनाज काम के बदले अनाज और गरीबी रेखा से नीचे
रहने वालो कको दिया जाना था और बेच दिया नेपाल और बांग्लादेश को....यह घोटाला
54 जिलो द्वारा किया गया और 67 मालगाड़ियो से विदेशी ठिकानो पर भेज दिया
गया....
*जानिए क्या है घोटाला*
खाद्यान्न घोटाला तकरीबन 35 हज़ार करोड़ को है जो साल 2004 में सामने आया। इस
घोटाले के तहत गरीब लोगों को सरकारी गल्ले की सस्ती दुकानों के माध्यम से सस्ती
दरों पर दिये जाने वाले अनाज को विदेश भेजे जाने का आरोप है। माना जा रहा है कि
ये घोटाला वर्ष 2002 से चल रहा था।
इस मामले की तहकीकात के लिये मुलायम सिंह यादव सरकार ने एक जांच समिति बनाई थी।
पीडीएस के तहत गरीबों को दिए जाने वाला अनाज दो योजनाओं के तहत केंद्र से आया
था
1. काम के बदसे अनाज
2. ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वाले को खाद्यान्न का वितरण
इस मामले को 2005 में मायावती सरकार ने सीबीआई को देने की संस्तुति की। शुरुआत
में दस ज़िलों में जांच का काम शुरू किया गया। जांच के काम में पहले तीन
एजेंसियां थीं जिनमें आर्थिक अपराध शाखा, एसआईटी और यूपी पुलिस शामिल थी। लेकिन
बाद में इस मामले में सीबीआई को भी शामिल कर लिया गया। जांच के लिए तीन ज़िले
सीबीआई के हवाले किए गए थे।
3 दिसंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सभी 54 ज़िलों में हुए
खाद्यान्न घोटाले की जांच का काम सीबीआई को सौंपा। कोर्ट ने कहा कि जहां- जहां
से खाद्यान्न विदेशों को गए हैं उसकी जांच सीबीआई करे और हर दूसरे महीने जांच
की प्रगति रिपोर्ट कोर्ट के सम्मुख रखे। इसके अलावा वित्त मंत्रालय के प्रवर्तन
निदेशालय को निर्देश दिया गया कि इस घोटाले में शामिल दोषी लोगों के खिलाफ
कार्रवाई करे।
लेकिन ख़ास बात ये है कि एसेंशियल कमॉडिटीज़ एक्ट के तहत किसी भी मामले में
अफसरों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सरकार की अनुमति ज़रूरी है। लेकिन कोर्ट ने इस
बाध्यता को खत्म कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सीबीआई दोषियों के खिलाफ सीधे
चार्जशीट दायर करे। कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर कहीं इस मामले में राज्य सरकार
की अनुमति की ज़रूरत पड़े तो मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश को तीन महीने के अंदर
स्वीकृति देनी होगी। अगर वो ये स्वीकृति नहीं देते हैं तो मान लिया जाएगा कि
स्वीकृति मिल गई है।
इस मामले में 34 ज़िलों की जांच रिपोर्ट हाई कोर्ट में पेश कर दी गई है। पर हाई
कोर्ट इससे संतुष्ट नहीं है। चार्जशीट में केवल छोटे कर्मचारियों के नाम ही हैं
जबकि इस मामले में करीब 319 कर्मचारियों के नाम सामने आ चुके हैं।
कर रही है इसके लिए एक निति बनकर तैयार है...एक समाज सेवी संगठन को इसका ठेका
भी दे दिया गया है...अर्थात सुबह शाम काम ना करो काम क्रीडा में व्यस्त रहो जय
हो.....ताकि आप सब या हम सब अपने अधिकारों से अपना ध्यान काम क्रीडा पर
दे.......*हाय राम*.... सरकार की सोच और व्यवस्था पर थूकने को जी कर रहा
है.....
आनाज सड़ने पर माननीय प्रधानमंत्री श्री डॉ. मनमोहन सिंह सिर्फ न्यायलय को निगत
शिक्षा सीखा सकते है बाकि तो वो मुस्कुरा कर या नीली पगड़ी पहकर शांत चित्र
मुद्रा में बैठ कर मनोभाव भी व्यक्त नहीं कर सकते.....कृषि मानती माँ करें
क्रिकेट मंत्री शरद पावर को लरिब असहाय लोगो की तड़प या भूख से कोई सरोकार नहीं
उनको तो बस क्रिकेट का बुखार है....उन्होंने शायद ही कभी किसी और राज्य में
जाकर किसानो की परेशानी का सबब लिया हो .......
आनाज साद सकता है परन्तु भूख से बिलखते बच्चो को एक निवाला उससे नहीं मिल सकता
गरीब की थाली कि बात की जाती है अरे मेरे दोस्तों गरीब की थाली नहीं होती वो
बेचारा तो हाथ पर रोटी रख कर और पत्तल पर चावल रख कर खा लेगा पर कमबख्तो उस तक
ये आनाज पंहुचा तो दो आनाज के सड़ने का कारण यह भी है की सरकार गावं गावं तक ये
आनाज कैसे पहुचाये इसलिए सरकार ने सोचा की क्यों ना इसको गोदामों में सड़ने ही
क्यों ना दिया जाये.....भारत के एक सर्वे के अनुसार (2006 ) भारत का 26 % गरीब
आज भी रोजी रोटी के लिए मोहताज है....
विपक्ष भाजपा का कहना है की सरकार की मंशा यह है की सड़े आनाज से शराब बनायीं
जा सके ताकि वैसे ये मुद्दा हो या नहीं पर कमीशनखोरो को इसका फायेदा दिया जा
सके मुझे तो यही लगता है....
वैसे क्या कहना सरकार का हर वो वास्तु जो अयाश्शी से जुडी है बनाओ और लोगो तक
पहुचाओ...डॉ. साहब मुस्कुरा देना या शांत मुद्रा में बैठे रहना ही गरिमा नहीं
भारत के प्रधानमंत्री को तब शोभा देगा जब वो कुछ करने की चेस्गता करें ना की
गोबर गणेश बना रहे.....भूखो और गरीबो को उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ने वाली
सरकार पादरी माल्थस का अनुशरण कर रही है....1943 में बंगाल की भुकमरी में वहां
के सेथ्सहुकारो के गोदाम हरे थे पर जनता बिलखती रही....
सामाजिक व्यवस्था में ऐसी सरकार सिर्फ संडास फ़ैलाने वाली टट्टी की भाँति है 35
हजार करोड़ के इस घोटाले में यह आनाज काम के बदले अनाज और गरीबी रेखा से नीचे
रहने वालो कको दिया जाना था और बेच दिया नेपाल और बांग्लादेश को....यह घोटाला
54 जिलो द्वारा किया गया और 67 मालगाड़ियो से विदेशी ठिकानो पर भेज दिया
गया....
*जानिए क्या है घोटाला*
खाद्यान्न घोटाला तकरीबन 35 हज़ार करोड़ को है जो साल 2004 में सामने आया। इस
घोटाले के तहत गरीब लोगों को सरकारी गल्ले की सस्ती दुकानों के माध्यम से सस्ती
दरों पर दिये जाने वाले अनाज को विदेश भेजे जाने का आरोप है। माना जा रहा है कि
ये घोटाला वर्ष 2002 से चल रहा था।
इस मामले की तहकीकात के लिये मुलायम सिंह यादव सरकार ने एक जांच समिति बनाई थी।
पीडीएस के तहत गरीबों को दिए जाने वाला अनाज दो योजनाओं के तहत केंद्र से आया
था
1. काम के बदसे अनाज
2. ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वाले को खाद्यान्न का वितरण
इस मामले को 2005 में मायावती सरकार ने सीबीआई को देने की संस्तुति की। शुरुआत
में दस ज़िलों में जांच का काम शुरू किया गया। जांच के काम में पहले तीन
एजेंसियां थीं जिनमें आर्थिक अपराध शाखा, एसआईटी और यूपी पुलिस शामिल थी। लेकिन
बाद में इस मामले में सीबीआई को भी शामिल कर लिया गया। जांच के लिए तीन ज़िले
सीबीआई के हवाले किए गए थे।
3 दिसंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सभी 54 ज़िलों में हुए
खाद्यान्न घोटाले की जांच का काम सीबीआई को सौंपा। कोर्ट ने कहा कि जहां- जहां
से खाद्यान्न विदेशों को गए हैं उसकी जांच सीबीआई करे और हर दूसरे महीने जांच
की प्रगति रिपोर्ट कोर्ट के सम्मुख रखे। इसके अलावा वित्त मंत्रालय के प्रवर्तन
निदेशालय को निर्देश दिया गया कि इस घोटाले में शामिल दोषी लोगों के खिलाफ
कार्रवाई करे।
लेकिन ख़ास बात ये है कि एसेंशियल कमॉडिटीज़ एक्ट के तहत किसी भी मामले में
अफसरों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सरकार की अनुमति ज़रूरी है। लेकिन कोर्ट ने इस
बाध्यता को खत्म कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सीबीआई दोषियों के खिलाफ सीधे
चार्जशीट दायर करे। कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर कहीं इस मामले में राज्य सरकार
की अनुमति की ज़रूरत पड़े तो मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश को तीन महीने के अंदर
स्वीकृति देनी होगी। अगर वो ये स्वीकृति नहीं देते हैं तो मान लिया जाएगा कि
स्वीकृति मिल गई है।
इस मामले में 34 ज़िलों की जांच रिपोर्ट हाई कोर्ट में पेश कर दी गई है। पर हाई
कोर्ट इससे संतुष्ट नहीं है। चार्जशीट में केवल छोटे कर्मचारियों के नाम ही हैं
जबकि इस मामले में करीब 319 कर्मचारियों के नाम सामने आ चुके हैं।
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