रविवार, 20 सितंबर 2020

विशुद्ध सत्य कथा : 4 - जूनून की हद तक चाहत बनी एनसीसी

11 वीं कक्षा की नगर के किसी विधालय में इंटर लेवल पर एनसीसी नहीं थी और हमे डिग्री कॉलेज में जाके सी सर्टिफिकेट लेने की देरी बर्दाश्त नहीं थी। राहुल कौशल और अनिल त्यागी सबसे पहले 41 वीं बटालियन गए और उस समय के कमांडिंग अफसर लेफ्टिनेंट कर्नल के के शर्मा जी से बात की। उन्होंने उनसे कहा की सर हमारे स्कूल को प्लाटून दिलाने का कष्ट करें, उन्होंने कहा की यदि कोई टीचर तैयार हो तो हम आवंटित कर सकते है लेकिन उसके पास सी सर्टिफिकेट होना चाहिए साथ ही आपके कॉलेज के प्रधानाचार्य का एनओसी।

बस दिमाग के फ्यूज उड़ गए की कैसे किया जाय समय भीकम है क्योकि 15 अगस्त से एनसीसी का सेशन शुरू हो जाता है। सबसे पहले स्कूल गए और टीचरों से से इस बाबत बात की लेकिन कोई तैयार नहीं हुआ। एनसीसी ज्वाइन करने का सपना अब सपना सा लगने लगा। कई दिन गुजने के बाद जूनियर वींग के एनओ श्री कृष्ण पाल सिंह जी ने कहा की एक व्यक्ति है जो सीनियर विंग का एनओ बन सकते है। उन्होंने बताया की श्री विनोद सिंह जी से बात करों और उनको मनाओ वही है जो सी सर्टिफिकेट होल्डर है और एनसीसी को चला भी सकते है।

हम तुरंत उनके पास गए क्योकि वो हमारे इंग्लिश के टीचर थे, हमनें उनसे सारी बात बता दी और उसके बाद उन्होंने हाँ कह दी लेकिन कभी-कभी कुछ काम अपनी अहमियत शुरू में ही दिखा देते है। कभी प्रधानाचार्य नहीं कभी सीओ नहीं बस इस तरह अगस्त की 5 तारीख आ गई तब जाकर हमारे प्यारे विधालय राजकीय इंटर कॉलेज बुलंदशहर के लिए 105 कैडेट्स की प्लाटून आबंटित हुई और हम सातवें आसमान पर खुशियाँ मनाने लगे। इस काम के लिए ना जाने साईकिल से कितने चक्कर एनसीसी ऑफिस के और स्कूल के लगे, ना जाने कितनी बार सीओ सर से कहा की आप ही कोई व्यवस्था करा दीजिये। ना जाने कितनी बार लगा की अब एनसीसी नहीं मिलेगी शायद सी सर्टिफिकेट करने का या आगे आर्मी में जाने का सपना पूरा नहीं होगा। खैर अब कोई दिक्कत नहीं थी आखिर एक पडाव पूरा हो गया था अब आगे की सोचनी है नयी लड़ाई लड़नी है।


उसके बाद शुरू होती है शुक्रवार और शनिवार को हमारी परेड जिसके लिये शर्ट, पेंट, बैल्ट, कैप और जूते बटालियन द्धारा भेजे गए। मेहनत का फायदा यह हुआ की मुझे अपने कॉलेज की एनसीसी टीम का सीनियर अंडर ऑफिसर बनाया गया। एनसीसी में कंधे पर लाल रंग की रैंक और उसपर काले रंग की दो पट्टियाँ पहनने का सपना हर किसी का होता है। मेरे साथ भानुप्रताप सिंह को अंडर ऑफिसर बनाया गया। अन्य मित्रों में अतीक अहमद, प्रभात वर्मा, अनवर खान, स्व० महेंद्र सिंह थे, एनसीसी एक ऐसी संस्था है जिसमें किसी से दोस्ती ना हो, हो नहीं सकता सभी के सभी मित्र बने और घनिष्ठ मित्र बनते चले गए।


उसके बाद एक कैम्प का आयोजन गाजियाबाद ग्रुप की ओर से किया गया जो बनवासा, टनकपुर एयरफ़ोर्स बेस पर लगाया गया। हमारी एक बस बुलंदशहर से चली और अलग अलग स्कूल के कैडेट्स को लेते हुए डिबाई पहुंची जहाँ से अपने कुछ और साथियो को लेते हुए बरेली, पीलीभीत होते हुए हम अपने कैम्प ग्राउंड तक पहुंचे लेकिन आपको बता दूँ रास्ते में कोई शादी होगी जिसमें हमारी बस के लडको ने चढत में डांस ना किया हो पुरे रास्ते, गाने, चुटकुले हुडदंग मचाते हुए हम बनबसा पहुंचे। 

क्रमशः

कैसे फायरिंग प्रतियोगिता में भाग लिया और सिल्वर जीता, कैसे रिपब्लिक डे कैम्प के लिए चुना गया आदि किसकी वजह से मंच पर बोलना सीखा और और रात को 2 बजे कैसे जागा पूरा कैम्प जिसमें 750 कैडेट्स और 300 अन्य अधिकारी, कर्मचारी और खाना बनाने वाले परेशान हुए, एक भूत की पहेली भी पढ़िए अगले अंको में.....

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जानकारीपरक आलेख।

Rahul Kaushal ने कहा…

आपका आशीर्वाद लगभग सभी पोस्ट पर मिलता है भले ही वह पोस्ट लायक हो या नही। आआपक हृदय से आभार