रविवार, 1 मार्च 2020

मां की परिभाषा "मां" होती है

किलकारी तेरे आंगन में जब नहीं गूंजी थी सालों तक
जग के तानों को सुनकर तू घुट-घुट कर रह जाती थी
मां मेरी मंदिर-मंदिर की चौखट तूने नंगे पैरों से नापी थी
डॉक्टर, वैध जगत के तूने देख लिए सब सारे थे
तब ईश्वर की कृपा से मैं कोख में तेरी आया था

तू पेट के बल सोया करती थी अब तूने वो छोड़ दिया
मेरे खातिर अब मेरी माँ बिस्तर से धीरे उठती है
मुझे कष्ट ना हो जाय धीरे से वो अब चलती है
जानता हूंं  कुछ चीजों से तुझको नफरत है खाने में
लेकिन मेरे पोषण को तूू सहज उन्हें भी खा लेती हैं
कुछ ऐसी पसंद की चीजें थी जो मेरे लिए तूने छोड़ी है

तू नाजुक सी एक फूल परी है जिसने बोझा मेरा ढोया है
नौ महीने की कठोर यात्रा में मुझको पल्लवित कर डाला है
कष्ट असहनीय हुआ तुझे था, मुझे देख मुस्काई थी
मुझे गोद में लेकर तू घूंट कष्ट का पी गयी थी
कच्ची मिट्टी के इस घट को तूने मानव बना डाला था
दुल्हन के चक्कर में मैंने कष्ट तुझे बहुत पहुंचाया था

तेरे बनाये आंगन से दूर तुझे मैंने ही कर डाला था
कुत्ते बिल्ली पाले थे मैने उनको दूध पिलाया था
मां की दो रोटी पर मैनें हो हल्ला खूब मचाया था
तेरे सुहाग के गहनों को मैनें गिरबी रखवाया था
मोह सुंदरी बीबी को पैंडल नेकल्स दिलवाया था
तुझको नौकर जैसे रख पल पल तुझे सताया था

तेरा बेटा होकर भी मां मैं कर्मों से निकृष्ठ कहलाया हूं
मुझको क्षमा तू कर देना मैं पाप बहुत कर आया हूँ
मुझको दोजख भेजेगा ईश्वर ऐसा करम कर आया हूँ
अगले जन्म मां तू ही बने मेरी ऐसी इच्छा कर आया हूँ
जो गलती मुझसे हो गयी उसको सुधारु यह प्रण ले आया हूँ
मां, मां होती यह परिभाषा अब जाकर समझ पाया हूँ.....

3 टिप्‍पणियां:

Mahima ने कहा…

Bahut baddiya likha hai..

Mahima ने कहा…

Beautifully written..

अजय कुमार झा ने कहा…

सच है माँ तो अवर्णनीय है | माँ कायनात है , माँ करिश्मा है