राहुल कौशल
गाँव की चौपाल
में हुक्के की गुड़गुडाहट क्या बंद हुई, थाना और कचहरी में गाँवों के विवादों की तादाद बढती चली गई। ज्यादा पुरानी बात
नहीं है दो ढाई दशक पूर्व तक गाँव-देहात में हुक्के के साथ लगने वाली चौपाल गाँव
के छोटे ही नहीं, बल्कि बड़े-बड़े
मसलों को हल कर दिया करती थी। गाँवों की सरलता और मेलजोल को शहरों की चमक-दमक लील
गई है। शहरों की गलत बातों का प्रभाव आज गाँव-देहात की संस्कृति को पथभ्रष्ट कर
रहा है। जिसके कारण नई पीढ़ी में एक दूसरे के प्रति प्रेम और सद्भाव की जगह वैमनस्य
और कटुता ने ले ली है। हमारी संस्कृति में परिवार के मुखिया और चौपाल के मुखिया को
विशेष दर्जा प्राप्त था, इनकी बातों को
सभी अमल में लाते थे। लेकिन समय के साथ आ रहे बदलावों के कारण संयुक्त परिवार और
चौपाल का न्याय, किस्से कहानियों में
तब्दील होता जा रहा है।
और इसके कारण समाज
पर सबसे बड़ा प्रभाव यह हो रहा है कि जहाँ कई मसले जैसे लड़ाईयां, मनमुटाव, खेतों की सीमा रेखा का विवाद, शादी संबंधी विवाद आदि चौपाल पर हुक्के की गुड़गुडाहट के साथ
सुलझा लिए जाते थे। दोनों पक्षों का मानसिक और आर्थिक शोषण नहीं होता था, आज थानों और कचहरी में यह मामूली से दिखने वाले
झगड़े, मुकदमो का रूप ले लेते है
और परिवार के परिवार अपना सब कुछ मुकदमें बाजी में कंगाल हो जाते हैं।
ध्यानार्थ : हम
यहाँ तम्बाकू उत्पाद को प्रोत्साहित नहीं कर रहे है बल्कि समाज के ताने-बाने से
निकली उस धुन को सुना रहे है जो मनमोहक और समस्या का हल प्रदत्त करती थी। कहते है
शीरे में तैयार किया गया तम्बाकू पेट की गैस और हाजमे के लिए राम बाण का कार्य
करता था। अब ना तो परिवार और समाज में बात होती है ना ही पेट में बात घूमती है।
वैदिक काल
पंचायतों का
प्रदुभाव वैदिक काल में ही हो गया था। ग्राम के प्रमुख को ग्रामणी कहते थे। उत्तर
वैदिक काल में भी यह होता था जिसके माध्यम से राजा ग्राम पर शासन करता था।
बौद्धकालीन ग्राम परिषद् में "ग्राम वृद्ध" सम्मिलित होते थे। इनके
प्रमुख को "ग्रामभोजक" कहते थे। कृषि भूमि की व्यवस्था परिषद् अथवा
पंचायत करती थी तथा ग्राम में शांति और सुरक्षा बनाए रखने में ग्रामभोजक की सहायता
करती थी। जनहित के कार्यों को यही तंत्र संभालता था। चाणक्य ने ग्राम को राजनीती
की इकाई माना है। "अर्थशास्त्र" का "ग्रामिक" ग्राम का प्रमुख
होता था जिसे कितने ही अधिकार प्राप्त थे। ग्राम की एक सार्वजनिक निधि भी होती थी
जिसमें जुर्माने, दंड आदि से धन
आता था। इस प्रकार ग्रामिक और ग्राम पंचायत के अधिकार और कर्तव्य सम्मिलित थे
जिनकी अवहेलना दंडनीय थी। गुप्तकाल में ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई था जिसके
प्रमुख को "ग्रामिक" कहते थे। वह "पंचमंडल" अथवा पंचायत की
सहायता से ग्राम का शासन चलाता था। उस समय में पंचायत के सदस्यों को "ग्रामवृद्ध"
कहा जाता था। हर्ष ने भी इसी व्यवस्था को अपनाया। उसके समय में राज्य
"भुक्ति" (प्रांत), "विषय" (जिला) और "ग्राम" में विभक्त था।
पंचायतो के
द्धारा किये गए जनसुधार के निर्णय
1 - मध्य प्रदेश
के डिंडौरी की डुलहरी ग्राम पंचायत ने समाज हित में ऐसा फैसला लिया जो एक मिसाल से
कम नहीं। बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती के मौके पर आयोजित विशेष ग्राम सभा के दौरान
पंचायत ने फैसला सुनाया कि गांव का जो भी शख्स बच्चों का बाल विवाह करवाएगा उसे
समाज से बहिष्कृत किया जाएगा। ना केवल बहिष्कार किया जाएगा बल्कि भारी भरकम जुर्माना
भी देना पड़ेगा और गांव का जो भी व्यक्ति समाज से बहिष्कृत शख्स से संबंध रखेगा
उसे भी समाज से निष्कासित कर दिया जाएगा। पंचायत ने सभी गांव वालों को शपथ भी
दिलाई। ग्रामीणों ने इस फैसले का स्वागत किया है। पंचायत को ये फैसला इसलिए लेना
पड़ा क्योंकि गांव के कई लोग चोरी छुपे बच्चों की शादियां करवाते है। कई बार
समझाईश देने के बाद भी बाल विवाह जैसी कुप्रथा बंद नहीं हुई तो अब सख्ती की गई है।
2 - हिसार: एक
पंचायत ने एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला लिया है। इस फैसले के अंतर्गत बाहरवीं क्लास में
अव्वल आने वाली बेटी को एक दिन की सरपंच बनाया जाएगा। उस दिन वह जितने फैसले करेगी
उन पर सरकारी और गांव की तरफ से भी मुहर लगेगी। गांव के इस फैसले से गांव की
बेटियों में जोश और बेहद खुशी है। उनका कहना है कि इससे बेटियां स्वावलंबी तो
बनेंगी हीं साथ ही उनमें हौसला भी बढ़ेगा।
3 - जींद
(हरियाणा): शराब के कारण लोगों में हो रहे आपसी झगड़ों से सबक लेते हुए गांव
हंसडैहर के ग्रामीणों ने ऐतिहासिक फैसला लिया कि गांव में शराब नहीं बिकने दी
जायेगी। इसके लिए गांव के बिन्दुसर तीर्थ के प्रांगण में ग्राम पंचायत की बैठक हुई
जिसकी अध्यक्षता सरपंच पिंकी देवी ने की। बैठक में गांव के लोगों ने कहा कि
नशाखोरी के कारण गांव का माहौल खराब रहता है। इससे आपसी लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं,
जिसका खामियाजा बच्चों और बुजुर्गों को भुगतना
पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में कई जगहों पर अवैध शराब बिकती है। इस
बिक्री को गाँव के लोग मिलकर रोकेंगे।
4 – सोनीपत : ओलंपियन पहलवान योगेश्वर दत्त के गांव
भैंसवाल के ग्रामीणों ने गांव में पंचायत कर एक पहल करते हुए भविष्य में अपने
बच्चों को निजी नहीं सरकारी स्कूलों में पढ़ाने का फैसला लिया है। इस के बदले में
ग्रामीणों ने सरकार से स्कूलों में सुविधाओं के साथ स्टॉफ पूरा करने की मांग की है
जिसमें स्कूल के डीडीओ राजेंद्र सिंह ने पहल की तथा गांव वालों को एकत्र कर सरकारी
स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला कराने का आग्रह किया।
कई बार पंचायत
तुगलकी फरमान भी दे देती है लेकिन समाज में सुधार लाकर लोगों को प्रोत्साहित करके
बदलाव लाया जा सकता है। आज थानों और कचहरी में लंबित पड़े मामलों को जल्दी से
सुलटाने के लिए दुबारा से ग्राम इकाई पर पंचायत के फैसलों की व्यवस्था होनी जरुरी
है लेकिन कुछ नियमों के साथ ताकि कोई पक्षपात ना कर सके। किसी मजबूर का उत्पीडन ना
हो सकें और कोई मानसिक और आर्थिक पचड़ों में ना पड़े। क्योकि किसान खेती करें या
कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाकर अपनी कमाई बर्बाद करें ?
तब हम कह सकेंगे
की भारत सच में गावों और किसानो का देश है। और....... हुक्के की गुड़गुडाहट में
यूँही फैसले हो जाते है।
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-02-2020) को "भारत में जनतन्त्र" (चर्चा अंक -3609) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरा सौभाग्य की मेरा लेख आपने इस लायक समझा। सादर प्रणाम....
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