शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

मेरी ननिहाल एक किस्सा

बात की संस्कारिक कार्यक्रम की है ये तो याद नहीं की यह शादी समारोह था या नामकरण लेकिन एक जलसा था। मेरी जान पहचान के सब मौजूद थे जैसे अरविन्द भैया, संदीप भैया, पंकज भैया, नवनीत भैया, अमित भैया और मेरी प्यारी एवं आदरणीय बहनें। सुबह सबेरे हमारे सबसे शरारती मामा जी स्व0 श्री महेंद्र शर्मा सबको दुखी करने लगते और कहते की नेस्तियो उठ जाओ सुबह का सूरज चढ़ आया। सच मानिये सुबह के 5 या 6 बजे जाड़ो में किस कदर बुरा लगता है और यह हाल सभी का होता लेकिन जितने मामाजी मजाकिया थे उतने ही गुस्से वाले भी थे, प्यार का आलम यह की आपके लिए कुछ भी कर जाय, एक किस्सा उनका एक बार बच्चो का मतलब हम सब का मन खरबूजे खाने को हुआ तो शायद 25 किलो खरबूजे एक बोर में खरीद कर ले आये और जो फीका निकलता उसको फैंकते जाते की भैंस खा लेंगी, और हुआ यह की एक दो को छोड़कर कोई मीठा नहीं निकला तो बोले अबे बुरा के साथ खा लो।

खैर बात को वही लाते है जहाँ से शुरू की उठाने के बाद सभी लडके घर के वफादार विक्की  (जर्मनशेफर्ड कुत्ता) को लेकर हमारे खेतो पर निकल जाते है जहाँ नित्य क्रिया से निवृत होकर रसगुल्ला नाम का गन्ना खाते फिर वापस घर आकर नहाते और सुबह सुबह का स्वादिष्ट भोजन मक्खन और मठ्ठे के साथ लेते। यह एक परिवार का एक दूसरे के प्रति प्यार ही तो था की जिसको रात्रि में डिबियां जलानी है वो बिना किसी देरी के यह कार्य करेगा और जिसको जानवर बंधने है वो बंधेगा जिसको ताले लगाने है वो ही लगाएगा बिना किसी परिवर्तन के। असली मजा इस कार्यक्रम में यह था की सोने के लिए रथखाना नाम का बड़ा सा कमरा होता जहाँ गन्ने की तुड़ी बिछा कर उनके ऊपर दरे फिर गद्दे और अंत में चादर का बिछौना बनाया जाता जहाँ सभी लडके और पुरुष एक साथ सोते। पहले गप्पे लगाय जाते फिर मूंगफली खाई जाती, हाँ कोई कोई मेरी तरह रबड़ी का स्वाद भी लेता और सोने से पहले गुड और हंडिया का लाल वाला दूध मलाई मारके आई गजब... 

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