शनिवार, 4 जुलाई 2009

स्वतंत्रता का तीर्थ- "सेल्युलर जेल"



समस्त विश्व समुदाय जिसे सेल्युलर जेल के नाम से जनता हैं शायद वह यह नही जनता कि यह नाम सुनने में भले ही कानो में मिश्री घोलता हो परन्तु हकीकत कुछ और ही बयां करती हैं सेल्युलर का मतलब है - "एक ऐसी जेल जहाँ प्रत्येक कैदी के लिए छोटी-छोटी कोठरी बनी हो। जिससे हर कैदी को अलग-अलग रखा जा सके ताकि कोई किसी से न मिल पाय।"

यह जेल वास्तव में एक व्यथा का वर्णन भी है, असीमित त्याग, देशभक्ति, स्वभिमान तथा भारत मांके लालो के अपनी मां के लिए किए गए त्याग को बताती है। भारत कि आजादी कि लड़ाई से इस जेल को हटाना सम्भव नही, अतः अब स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम की 150 वीं वर्षगाँठ निकल जाने पर हम नही जानते है कि क्या हैं सेल्युलर जेल, क्यो हम इस को तीर्थ कह कर बुलाते हैं ?

काला पानी अंडमान-निकोबार भारतीय द्वीप पर स्थित है। आज भी अधिकतर लोग इसे कालापानी के नाम से जानते हैं इसका नाम 'हनुमान' था, जहाँ से श्री राम ने लंका पर चढ़ाई करने का विचार किया था, परन्तु बाद में धनुषकोटि से की.......यह भी कहा जाता है कि अंडाकार होने के कारण इसे अंडमान कहते हैं। भौगोलिक दॄष्टि से यह महासागर में महत्वपूर्ण स्थान पर है , यह धर्म-प्रचारकों, व्यापारियों, चोर-लुटेरो, अवांछनीय व्यक्तियो कि लंबे अर्से तक शरण स्थली बनी रही।

18 वीं शताब्दी के अंत में ईस्ट इंडिया कंपनी ने यहा बस्ती बनाने कि असफल कोशिश की। यहा पर सन् 1789 में ईस्ट इंडिया कंपनी के आर्चिबाल्ड ब्लेयर ने अपने जहाज़ सुरक्षित रखने के लिए इसे बंदरगाह के रूप में इस्तेमाल किया था। इसलिए इसको पोर्ट ब्लयेर के नाम से भी जाना जाता है।

यहाँ सन् 1864 में लगभग 8875 बंदी थे। सबसे पहले एक कठोर जेलर जे सी पार्कर को 4 मार्च 1858 में 200 बंदियो के साथ भेजा गया।

सन 1857 में आज़ादी के आंदोलन का श्री गणेश हुआ था, इस संग्राम के मद्देनजर अंग्रेज़ो ने पैशाचिक दंड के लिए संकल्प लिया और एकांत में जेल बनाने का निर्णय लिया
सन 1858 में अंडमान में कारागार बनाने का निर्णय लिया....अनुमान हैं कि एक देश भक्त शेर अली पठान को कला पानी भेजागया, उसने लार्ड भाइयो का वध किया था,
इसलिए उसको फाँसी पर लटका दिया गया उधर इस भयावह कारागार का निर्माण कार्य 1896 में सुरू कर दिया गया.....अनुमान था कि लगभग सवा पाँच लाख रुपये में तथा तीन वर्ष में निर्माण पूरा हो जाएगा एक जंगल को काटने के लिए 600 आजन्म क़ैदियो को कार्य पर लगाया गया निर्माण के लिए और सभी कार्य रोक दिए गये ताकि कार्य समय पर पूर्ण हो सके

इसका स्वरूप विशाल रूप में सोचा गया,सात खंड और प्रत्येक खंड में तीन मंजिले, कुल मिलकर 698 एकांकी कोठरिया, फर्श से 10 फुट पर हवा के लिए एक झरोखा.....एक अटूट लोहे का दरवाजा भी लगा
जिसे हाथी भी ना तोड़ सके दस वर्षो में कार्य पूरा हुआ और सन 1906 में ये कारागार बन कर पूर्ण हुआ......यहाँ फाँसी के लिए भी फाँसी घर बनाया गया कहते हैं, कि निर्माण में लगभग तीन करोड़ ईंट लगीं धीरे-धीरे क़ैदियो का ताँता लग गया, 20वीं सदी के प्रारंभ से आज़ादी के दीवानो के आने की संख्या
तेज़ी से बढ़ने लगी.....मातृभूमि के प्रत्येक भाग से हिंदू, मुस्लिम और सिख आदि सभी देश भक्त आने लगे
यहाँ पर लाहौर षड्यंत्र केस, मोदला विद्रोह, बहावी विद्रोह, पटना षड्यंत्र केस, अंबाला केस, कुका विद्रोह, पूना विद्रोह, भाल्दा केस, काकोरी केस, हार्डिंग बम कांड,
रैय्या विद्रोह, अकाली और बब्बर विद्रोह, भुसावल केश, चटगाव शस्त्रागार कांड आदि के अभियुक्तो को भेजा गया सन 1908 में वीर सावरकर के बड़े भाई को देशभक्ति गीत लिखने के जुर्म में भेजा गया...नासिक जिला कलैक्टर जेक्सन की हत्या करने के लिए वीर विनायक सावरकर को सन 1911 में भेजा गया था.....डॉ. होतीलाल वर्मा (स्वराज साप्ताहिक पत्रिका के संपादक) को उत्तेजक लेख के लिए अंडमान भेजा गया कारागार में हो रही अमानवीय कार्यो के खिलाफ क्रांतिकारियो ने खिलाफत करने का निश्चय किया और 12 मई 1933 को उन्होने भूख हड़ताल शुरू कर दी
"न मुँह चिपके जिए न सिर झुकाके जिए"
भूख हड़ताल के पाँचवें दिन जबरन खाना खिलाने का हुक्म दिया गया जिसमे भगत सिंह के साथी महावीर सिंह की दूध डालने की प्रक्रिया (पाइप के ज़रिए ज़बरदस्ती, बर्बरता के साथ मुँह में डाला जाना) में मौत हो गयी। उसकी मौत को छिपाने के लिए लाश समुंद्र में फेंक दी गयी पर खबर कहा छिपने वाली थी सारे देश में फैल गयी दंड, कठोरता, बर्बरता और निर्दयता की कोई सीमा नही बचीं थी कोई अंत नही था यातनाओ का परंतु क्रांतिकारियो की सहनशीलता, साहस, दॄढ-संकल्प भी असीमित थे इन क्रांतिकारियो ने अपनी-अपनी भावनाओं को कोठरी की दीवारों पर लिख दिया जो आज भी वैसा ही हैं ईश्वरीय न्याय डेविड की मॄत्यू रोग ग्रस्त होने से हो गयी, 1945 में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने कारागार का मुआयना किया इस जेल की कहानी, जुल्मो की निशानी, वीरता, अदम्य साहस और त्याग की गाथाओ के कारण इसे आज़ादी का तीर्थ बना दिया गया और 30 अगस्त सन् 1979 में इस जेल को राष्ट्रीय स्मारक का रूप दिया गया

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

good research buddy keep it up- rohit

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Good and interesting information.......

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

बहुत ही खोजपरक तरीके से एकत्रित की गई जानकारी प्रदान की आपने....बस यूँ ही लिखते रहें ओर जानकारियाँ बाँटते रहें.....धन्यवाद