शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

शर्म आती है क्योकि ???

जब कभी हमारे परिवार में कोई परेशानी आती है तो हम एडी-चोटी लगा कर उसको दूर कर देते है, परन्तु आज हमें क्या हो गया कुछ लोग हमारे घर में घुस कर हमारे बच्चो को परिवार के सदस्यों को कुचल रहे है और हम हाथ पर हाथ रखे सुस्ता रहे है ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !
एक साम्यवादी देश हमारी देश कि आर्थिक स्थति की बीन बजाने पर तुला हुआ है और कामयाब भी हो रहा है ! उसके बनाये खिलोने, दूध यहाँ तक कि दिवाली और ईद पर झिलमिल करने वाली रौशनी हो या मोबाइल सब अवल दर्जे का घटिया सामान वह बड़ी आसानी से बेच रहा है और हमारे श्रमिक बेरोजगार हो रहे है मतलब दो धारी तलवार से काटे जा रहे ! एक तो हमारे लोग बेरोजगार हो रहे है दूसरे हमारी आर्थिक नीतियों का सत्यानाश हो रहा है ! एक तो कड़वा करेला दूजा नीम  चढ़ा ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !

भारत की संसद पर हमला करने वाला अफजल हो या नोटंकी करने वाला कसाब ये दोनों हमारे संविधान की मजाक उड़ा सकते है लेकिन हम इनको फाँसी नहीं दे सकते ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है ! (मेरा मत है की इन जैसो को बीच में से चीर कर नमक और मिर्च भर कर चोराहे पर मरने के लिए छोड़ देना चाहिए !)
विश्व मानको की कसोटी पर खरा उतरने पर ही सामान ख़रीदा जाये ऐसे नियम अंतर्राष्ट्रीय कानून के दायरे में आते है ! लेकिन हम आज कुछ देशो से घटिया सामान लेते ना जाने किस दबाब में ! जबकि अमेरिका कद्दू भी इन मानको के आधार पर खरीदता है ! क्या हम इतने कमजोर हो गए है ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है
हमारा युवा अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन में पिटता रहे पर हम और हमारी सरकार कान में तेल डाल अपने मानव संसाधन को पीटने और देश छोड़ कर जाने से नहीं रोक सकते क्योकि उनके लिए यहाँ सही रोज़गार नहीं ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !
(एक बात तो बताना ही भूल गया हम अभी तक विश्व बैंक के कर्जे तले दबे है तो हम आजाद तो है ही  नहीं) 
होटलों में माफ़ कीजियेगा पांच सितारा होटलों में आम लोगो और किसानो के लिए बनायीं गयी योजनाओ का लोकर्पण किया जाता है, जिनका बजट ४ से ५ लाख रूपये होता है ! वहां मेरी विरादरी में से कुछ लोग तो केवल लाल पानी, कुकीज और मुर्गे की टांग खाने के लिए जाते है, उनका बड़ा सम्मान होता है और तो और तोहफे भी दिए जाते है जिसका बजट अलग से पास किया जाता है !
(मेरा कुत्ता भी कुकीज और मुर्गे की टांग खाने के बाद मेरे ही गुण गता है मेरा विरोध नहीं करता कभी)
परन्तु देश की सरहद की और आतंरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाने वाले एक सिपाही को प्रतिमाह १००००-२०००० से ज्यादा नहीं दे सकते उनके लिए बजट नहीं ला सकते ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !

ऐसा क्या क्या है जो हम नहीं कर सकते जरा गौरफरमाए:--
-हम तकनीक होते हुए भी आईटी में नंबर एक नहीं हो सकते क्योकि सत्यम घोटाला, सुखराम का टेलीफ़ोन घोटाला भी तो हमने ही किया है !
-कृषि प्रधान देश होते हुए भी हम नंबर एक नहीं हो सकते, ना ही किसानो के लिए बढ़िया योजनाये ला सकते और ना ही हम पशुधन में वृद्धी कर सकते ! (चारा घोटाला कोन करेगा)
-हम सुरक्षा कर्मियों की शहादत को भूल सकते है पर उनके परिवारों की जिम्मेदारी नहीं ले सकते ! (बोफोर्स घोटाला और ताबूत घोटाला कोन करेगा)
-हम किसी आतंकी देश या व्यक्ति को मुहतोड़ जबाब नहीं दे सकते 
-हम एक मंच पर समस्त भारतीयों को नहीं ला सकते 
-हम  (मेरे सहित) गाल बजा सकते है, लिख सकते है पर कुछ कर नहीं सकते
-हम शिक्षा का स्तर नहीं सुधार सकते
-हम कश्मीर, अरुणाचल को अपना राज्य नहीं कह सकते (चाइना और पाक से हमको डर लगता है जी)
-हम भारतीय नहीं कहलवा सकते, शर्म आती है
-हम रोजगार नहीं दे सकते
-हम सत्यता को नहीं मन सकते
-हम किसी को अब गले नहीं लगा सकते

ऐसी ही ना जाने कितनी बातें हम नहीं कर सकते पर कुछ तो होगा जो हम कर सकते है ?
-हम अमेरिका के तलुए चाट सकते है अपने रिश्ते को और भी मजबूत कर सकते है भले ही कोई गाँधी जी की समाधि पर कुत्ता घुमाये
-पडोसी से वार्ता कर सकते है उसको बेवजह झुक कर सलाम कर सकते है ताजमहल घुमने के लिए बुला सकते है
-बोफोर्स, ताबूत घोटाला कर सकते है
-विदेशी बैंको में काला धन जमा कर सकते है
-हम गाँधी जी के अलावा बाकी सब क्रांतिकारियों को भूल सकते और गाँधी परिवार की जयंती और मरण दिवस माना सकते है
-भाषा के नाम पर हिंदुत्व के नाम पर लोगो का गला काट सकते है, हम बिहारी बन सकते है मद्रासी बन सकते है, हम मराठी बन सकते है और उत्तर भारतीय बन सकते है 
-कश्मीर में घुसपैंठ करने दे सकते है 
-मजदूरो को मजदूर बना रहने दे सकते है 
-अधिकारी की कुर्सी पर बैठ कर किसी भी लड़की को रुचिका, मधुमिता  बना सकते  
-किसी भी भारतीय का अंग किसी विदेशी खलीफा की बेच सकते है
यहाँ तक की हम कुछ पैसो के लिए अपनी कलम (आज जो प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया कर रहा है) को भी बेच सकते है ! अब हमारा मूल्य कोई भी लगा सकता है !
सवाल बस यही कि हम क्या कर सकते है और क्या नहीं कर सकते,
आखिर हम कितने पानी में है यह सोचना जरुरी है कुछ करना जरुरी है वरना खड़े-खड़े तमाशा देखते-देखते खुद तमाशा बन जायेंगे ................
सितमगर वक्त का तेवर बदल जाये तो क्या होगा !
मेरा सर और तेरा पत्थर बदल जाये तो क्या होगा !! (नबाब देवबंद जी)
यारो अब तो सोचना ही होगा

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

bahut achcha likha hai. humare samaj ka sahi roop bataya hai. aaj kal jo ho raha hai aur hum kis tarah khamosh hai bahut achche se apne lekh main bataya hai apne.i wish ki aap isi tarah aur achcha likhte rahe God Bless You.

दीपिका ने कहा…

हर कॉलम में तारीफ करना... हर बार तुम मुझे इस बात के लिए मजबूर कर देते हो... लेख पढ़ने से पहले सोचती हूं... कि कुछ खामियां निकालुंगी... लेकिन तुम्हारे शब्द मुझे तारीफ करने पर मजबूर कर देते हैं... आज का लेख हालाकि बड़ा है... लेकिन एक बार भी मेरा ध्यान तुम्हारे शब्दों से नहीं भटका.. बल्कि पढ़ने के साथ-साथ उस सच्चाई को तुमने फिर जगाया... जो हम सब जानते हुए भी उससे अंजान बनने का नाटक करते हैं... लिखते रहो राहुल...