शनिवार, 27 नवंबर 2010

शायद मट्टू मरने के बाद भी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रही हो !)

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मट्टू हत्याकांड में आरोपी को फाँसी के बदले उम्र कैद दे दी गयी. इस निर्णय पर मुझे आपत्ति है, चूँकि मै एक सामान्य लेखक हूँ तो शायद मेरी मायने ना रखे पर मेरा कर्तव्य लिखना है अतः लिख रहा हूँ अपनी वेदना....
यहाँ मैं उन सभी महिलायों कि बात कर रहा हूँ जिनका श्रंगार, लज्जा उनसे छीन ली गयी है. न्याय  पालिका ने कहा है कि अपराधी का दोष उतना बड़ा नहीं कि उसे फाँसी दी जाये... (शायद मट्टू मरने के बाद भी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रही हो !)
क्या किसी महिला कि अस्मत छीन लेना और उसकी हत्या कर देना छोटा गुनाह है ? शर्म आती है इस वक्तव्य पर ! कई महीने  किसी स्त्री का शाररिक-मानसिक शोषण किया जाये और फिर बेरहमी से हत्या या उससे इतना मजबूर किया जाये की खुद ही अपना जीवन जीने से डरने लगे.......
आज दिल्ली हो या देश का कोई भी प्रान्त लड़कियां या महिलाये सुरक्षित नहीं (मेरा तो ऐसा ही मानना है) एक तरफ देश को विकसित होने का दर्जा देने की बात हो रही है तो एक तरफ आज भी हम पिछड़े हुए है..... हम कितना भी हल्ला काटे पर सच तो यही है की हम देश के गुनहागारो को सजा नहीं दे पाते तो देश को क्या मजबूत बनायेंगे...
ऐसे अपराधियों को तो बीच में से चीर कर नमक मिर्च डाल कर मरने के लिए छोड़ देना चाहिए.......

6 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

Rahul bhai mai aap se bilkul sahmat hun or muje lagta hai ki is des k yuvaon ko is tarah k julmo k khilaf uthna hoga or kuch to karna hoga, nahi to wah din dur nahi jab har or jangale raj hoga .

बेनामी ने कहा…

I m totaly agree with u Rahul and i want to appriciate u for this type of writing.

बेनामी ने कहा…

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hema ने कहा…

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hema ने कहा…

I Like ur writting skill. soo keep writting and tell the truth to all youth. All the best n my good wishes always with u.

बेनामी ने कहा…

राहुल भाई,
एक वकील ने कहा है कि न्यायालय यह मानती है कि भारत देश में रहने वाले सभी जन सामान्य, कानून के विद्वान हैं, पूरा जन समुदाय, अपने जन्म से मृत्यु पर्यंत तक के सामाजिक, व्यावसायिक, राजनैतिक, कानूनी, गै़रकानूनी आदि इत्यादि समस्त प्रकार के कानूनों का ज्ञाता है।
फिर क्यों जन समुदाय इन भड़वागिरी में लिप्त वकीलों, न्यायाधीशों, सरकारी/गै़रसरकारी अफसरों की परवाह करता है, समझ से परे है।
आज नहीं तो कल, अर्थात, भविष्‍य इन भड़वों का अंधकारमय तो होगा ही, संयम् रखें।
मेरा मन तो भारतीय कानून संज्ञान पर थूकने को करता है, आक् थू . . . . . भारतीय कानूनी भड़वों |