शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

जाने किसे |


आरम्भ ही अंत है, अंत ही तो जन्म है…
वस्त्र आत्मा बदल रही, वो नयी धुन में है…
चली है बड़े वेग से, कुछ पाने की ललक लिए…
चैन उसे नहीं पल का भी, खोज रही जाने किसे |

कली से फूल, फूल से कली यही तो एक सत्य है…
देखो प्रकृति रूप बदल रही, नए किसी स्वरुप में…
शून्य जैसी गति लिए, चली है अपने पथ वो…
थके बिना-रुके बिना, खोज रही जाने किसे |

शून्य से बना हूँ मैं, मुझसे शून्य है बना…
कर रहा हूँ नित कोशिशे, आचरण मेरा यही…
मन में मेरे हर घडी, कुछ पाने की चाह लिए…
बस धैर्य को लिए हुए, खोज रहा जाने किसे |

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

marmik aur sundar rachna