स्वर्ग, नरक और मोक्ष क्या है ?
दोस्तों आपने अलग अलग व्याख्या की आप सभी की बातो को श्रोधार्य करते हुए जो मैंने जाना वो कह रहा हूँ मैं अपनी यह बात आप सभी पर थोप नहीं रहा वल्कि जो मैंने जाना है वो कह रह हूँ ...
दोस्तों आपने अलग अलग व्याख्या की आप सभी की बातो को श्रोधार्य करते हुए जो मैंने जाना वो कह रहा हूँ मैं अपनी यह बात आप सभी पर थोप नहीं रहा वल्कि जो मैंने जाना है वो कह रह हूँ ...
मोक्ष क्या है ...
स्वर्ग क्या है ...
नरक क्या है ?
दोस्तों जैसे आपके बैंक में दो खाते होते है
एक क्रेडिट
और एक डेबिट
अर्थात आपका जमा धन (पुण्य)
आपके द्वारा कर्च किया धन (पाप)
ठीक वैसे ही परम पिता परमेश्वर के पास भी दो खाते होते है ...
आपके द्वारा किये सत कर्म (जमा धन राशि)
और पाप कर्म (आपका उधार)
जब आप कोई बुरा कर्म नहीं करते तो आपके खाते में सत कर्म के पुन्य जुड़ जाते है आप हजारपति लखपति करोड पति या उससे भी ज्यादा पुन्य कमा लेते है ...
बुरे काम करने वालो के ऊपर कुदरत का उधार चढ़ जाता है ...
अब इनके फायेदे और नुकसान
सत कर्म करने वालो के जितने पुन्य होते है वह अपने अराध्य ईश्वर के यहाँ रह कर उनको कर्च कर सकता है लेकिन यहाँ गौर करने वाली बात यह है की आपके खाते में जितने पुन्य होंगे उतने दिन आप वह रह पाएंगे ।
बुरे कर्म वालो के लिए यातनाओ से भरा हुआ जीवन कष्ट ही कष्ट उसका संसार होते है ...
एक और बात की जब कोई आदमी पुन्य और पाप का दोनों का भोगी होता है तो पहले उसके पुन्य का खाता शून्य किया जाता है फिर उसको उलटे कडाहे में मल - मूत्र और खून की नदियों से होते हुए उलटे लटकना होता है तब ईश्वर का नाम भजते हुए उसको 9 माह बाद जन्म मिलता है ताकि वह परमपिता को ध्यान में रख जीवन उसके नाम कर दे ...
अब लोग कहेंगे की जिसने पाप किया ही न हो तो ... एस कोई आदमी नहीं जिसने यह काम न किया हो एक मच्छर मरना भी हत्या करने जितना पाप है छोटा सा झूट आपको नरक जाने के लिए बाध्य कर सकता है।
तो जन्म मरण के चक्कर से बचना आसन नहीं लेकिन मुश्किल भी नहीं।
पुन्य और पाप के खाते कभी शून्य नहीं हो सकते क्योकि हम सभी परमपिता परमेश्वर की प्रथम संतान महाकाल का भोजन है (भगवत गीता सुनाने वाले ईश्वर ने खुद कहा की मैं प्रतिदिन एक लाख मानव योनि आत्माओ को तवे पर गर्म कर खाता हूँ और मैं ही हूँ जो सवा लाख को जन्म देता हूँ मैं सहस्त्र भुजो वाला एवं सहस्त्र मुख वाला 21 ब्रह्माण्ड का मालिक हूँ। अर्थात असंख्य हाथो और असंख्य मुख वाले ईश्वर की जो व्याख्या ऋग्वेद में की गयी है यह ईश्वर वो नहीं अर्धनारीश्वर का रूप ही महाकाल है लेकिन सदाशिव जिनके जन्म मरण का कोई उल्लेख किसी वेद (चार), पुराण (अठारह) या की और पुस्तक में नहीं किया गया वो ॐ या शिव वही है वही अकेले समस्त जग में गॉड पार्टिकल के रूप में मौजूद है 786 को हिंदी में लिख कर मिरर इमेज में देखने पर संस्कृत के ॐ की आकृति बनती है यही सच है।
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मोक्ष क्या है जब दोनों खातो की जमा राशि शून्य हो तब आप मोक्ष पा सकते है। वो कैसे तो किसी एकांत स्थल पर सिर्फ ॐ का नाम जप करें ...
Note: यह सभी बाते मैंने गरुण पुराण, भगवत गीता और दुर्गा सप्तसती के आधार पर कहीं है, और यह सभी कथन मेरी व्यक्तिगत राय है।
किसी की भावनाओ को ठेस पहुँचाने के लिए नहीं कही गयी।
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