मंगलवार, 3 अगस्त 2010

तेरा जाना एक दर्द दे गया

माँ के लिए लिखी मेरी कविता में कुछ और यादें जोड़ी है जो आज फिर माँ के जाने का दर्द गहरा कर गया......यह दिल से निकला दर्द है और वो दर्द है, जो उसके दिल में अपने आप आ जाता है जिनकी माँ चली जाती है अपने बच्चे को अकेला छोड़ कर इस बेदर्द दुनिया में आज मुझे दुःख भी है और माँ पर गुस्सा भी ! कैसे जी पाउँगा तेरे बिना इस दुनिया से लड़ कर माँ...

तेरा जाना एक दर्द दे गया,
कोई तराना बनते बनते रह गया !
तू क्यों नहीं मिलती मुझे अब,
क्या मैं इतना बेगाना हो गया !

जब तो कहती थी तू प्यारा है,
क्या वो सब झूट हो गया !
जीना था मेरी खुशियों के साथ,
फिर क्यों माँ तेरा बेटा अकेला रह गया !

बचपन में खेला जिस गोद में,
उसका वो लम्हा भर रह गया !
आँचल की छांव का एहसास,
बस आंसुओ में में छिप कर रह गया !

अब तो तू दिखती भी नहीं,
ना जाने वो चेहरा कहा छिप गया !
जिसके आंचल में मैंने बचपन जिया,
वो सिर से ना जाने क्यों छीन गया !

पिताजी रो रो कर रह जाते है,
छोटा भी अब गुमसुम सा हो गया !
तू बांध थी तीनो नदियों की,
जो ना जाने क्यों टूट गया !

अपने ही गम क्या कम थे जो,
जो तेरा साथ भी छुट गया !
तेरे जाने का दर्द ऐसा हुआ कि,
गहरा और गहरा दर्द हो गया !

"डरती थी तू मौत कैसी होती हैं,
और चुपके से उसे दोस्त बना लिया !
अब क्या जिन्दगी में माँ तेरे बिन,

बस तेरे साथ हर सबब खत्म हो गया"

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